पीड़िता

बदरी में बदला नजरिया,
अब तो समझो प्रिया ।
हवा में बुझा दिया,
हटायी जा रही झोपड़ियां ।
फलक से गिरी बिजलियाँ,
कुछ नाहक आग शर्तिया ।
टूट गई कितनी चुड़ियाँ ,
पीड़िता है सुंदर कलियां ।
क्या दिया या लिया ,
बदले में क्यों तल्खियां ?
मौत क्यों सावनी घड़ियां,
कोलाहल की ये कड़ियां ।
धरा पर अकेली छतरियां,
शेष रह गई खामोशियाँ ।
सब देख रही चिड़ियाँ,
मसीहा लूट लिए जिंदगियां।
इसी हेतु क्या नगरिया,
कोई नहीं सही कश्तियाँ।
पानी तो देख बटोहिया,
बस्तियों में रेंगती नदियाँ।
शातिरों के लिए खुशियां,
भटक गई है मछलियां
वाह रे मौसमी बहेलिया,
कहाँ जायेगी अब तितलियां ?