पता विजय शंकर प्रसाद जिंदगी की भी अपनी औकात है,स्नेहिल छवि से रखा था वास्ता ।आमंत्रण पर धूल के हालात हैं,मिसाल कवि लिए कुछ है तलाशता ।।एतबार नहीं करते बहके ख्यालात हैं,इंतजार करने में समीप ही दासता ।कहीं बरसात और कहीं जंगलात हैं,इज़हार हेतु शब्द को अर्थ पता ।।खिलौना नहीं हम और जज्बात है,बिदाई रस्म में कहीं है लापता ।आजमाता वारदात और गुनगुनाते करामात हैं,मुहब्बत की आग में समर्पण रास्ता ।।अंगराई अश्क बहने में अज्ञात है,अदृश्य मंजिल का शूल न घटा ।ख्वाब किताबी गुलाब तक खैरात है,सवालात के जवाब में आसमान फटा ।।हवा से आघात भी साक्षात है,धूप के मंजर से गहरा रिश्ता ।कभी रात और कभी प्रात है,गिरने से बचने में चल आहिस्ता ।।