अंधेरा

बकरीद हुआ है व्यतीत,
पोखर अब बेखबर नहीं ।
सड़क पर बकरियां सीमित,
खामोशियों में गांव-शहर नहीं ।।

टूटी पड़ी ज़िंदगी रीत,
कोई यहां निडर नहीं ।
निरीह पर कहर अतीत,
उजालों में गुजर-बसर नहीं ।।

अंधेरा से हुआ प्रीत,
पुण्य का ज़िगर नहीं ।
होली में वही गीत,
रहम की खबर नहीं ।।

पता नहीं यहां मीत,
होता असमर्थ ज़हर नहीं ।
सुख-दुख में रंग-रस फलित,
शायद सही पत्थर नहीं ।।

नेकी के रहबर अपरिचित,
गुलामी का पहर नहीं ।
मिट्टी से सब उदित,
तू तो पेशेवर नहीं ।।

आजादी शब्द है मर्यादित,
देश से ऊपर नहीं ।
न कर कभी कुंठित,
ठहरे हम जानवर नहीं ।।

तिरंगा है प्रिय सारगर्भित,
कुछ तो अगर-मगर नहीं ।
वीरता और ज्ञान पोषित,
धरा है बंजर नहीं ।।