खलबली

फटेहाल भिखारिन की पोटली,
फूल और कांटा संग कली।
रातभर अधूरापन में बावली,
दिनभर दौड़-भाग की गली-गली।
नहीं कहीं रोटियां जली,
खाली-खाली काया मानों अधजली।
कुत्ते से की हंसी- ठिठोली,
फिर दो कदम चली।
आगे ख्वाब बंजारे छली,
मदारी का खोया डफ़ली।
भूख-प्यास न है नकली,
नकलची बंदरियां भी बदली-बदली।

बेगम तो है मनचली,
पैदा कर दी खलबली।
राजा भी निकला जंगली,
जनतंत्र की प्रियतमा उतावली।
अश्क नहीं है पगली,
टूटी पड़ी है ओखली।
जनता बेसब्र हों उलझ ली,
क्योंकि जिंदा है धांधली।
परछाईं भले है सांवली,
नदी की रानी मछली।
श्याम कैसे बजाते मुरली ,
महल तक सेज मखमली।