मौत

पथ ऊबड़-खाबड़ मौत का है मुहाना,
जिंदगी का दर्पण शूल है सुहाना ।
यादगार लम्हे दिल तक यूं ताना-बाना,
हर कदम पर रचा बना अफसाना ।
बस अकेले होता है सबको जाना ,
दुनिया में है यहीं आखिरी फ़साना ।
नियति को भी है कुछ – कुछ निभाना,
इश्क और अश्क से लबरेज ठिकाना ।
अंग-प्रत्यंग तक सच है कोई बहाना,
यक्ष सवालों और संवादों का दिवाना ।
प्रियतमा !हमें नहीं हक़ है रूलाना,
रोशनी के बाद तय तिमिर छाना ।
परिवर्तन हीं जवाब का है नजराना,
प्रकृति को है इंसानियत को चलाना।
पहाड़ सी नदी को नहीं बताना,
सागर में जाकर उसे है समाना ।
बचपन का लौटा न तो जमाना,
कागज़ की नैया न रहा पैमाना ।
जवानी भी कहां है हमें भुलाना,
मछलियों को परछाईं से क्या छुपाना ?