गीत

पा कर खुशी अचानक, संसार नाचता है
प्रिय भी तो प्रेयसी का, सम्मान जानता है ।

इस दर्द के जहाँ ने, हर बार ही छला है,
अनुराग की डगर पर, जब आदमी चला है,
नाजुक बहुत हृदय था, टूटा तरह-तरह से,
कण-कण तड़प रहा है, शायद इसी वजह से,
आकुल हृदय अनूठा, अनुराग चाहता है ।

प्रिय भी तो प्रेयसी का, सम्मान जानता है ।।

सामर्थ्यवान बोली, अनमोल बोलते हैं,
है प्यार की न कीमत, पर लोग तोलते हैं,
हर आदमी यहाँ पर, अनुबंध बो रहा है,
मजबूर हर मुसाफिर, संबंध ढो रहा है,
ये दिल अनुप अनोखा, मनुहार चाहता है ।

प्रिय भी तो प्रेयसी का, सम्मान जानता है ।।

मेरे हृदय बसा क्या, वह बात कह रहा हूँ,
मैं अंतराल इतना, कब लाँघ पा रहा हूँ,
तुम आ नहीं सकोगे, मैं पा नहीं सकूँगा,
इस प्यार के महल को, पर ढा़ नहीं सकूँगा,
चढ़ प्रीति की अटारी, प्रिय प्राण झाँकता है ।

प्रिय भी तो प्रेयसी का, सम्मान जानता है ।।

देखो कि आज कैसे, इंसाफ हो रहे हैं,
बहती हुई नदी है, सब हाथ धो रहे है,
आदेश यदि मिले तो, कुछ रंग मैं भरूँगा,
तुम पुष्प बन खिलो तो, मैं गंध बन मिलूँगा,
“सागर” अभाव में भी, व्यापार जानता है ।

प्रिय भी तो प्रेयसी का, सम्मान जानता है ।।