बचपन की दीपावली

आई दीपावली फिर बचपन याद आने लगा
खुशियों से भरा त्योहार फिर याद आने लगा।

वो चिटपिटी, वो पिस्तौल, वो चरखी बड़ी अच्छी थी
वो साँप की गोली, वो मेहताब, वो फुलझड़ी अच्छी थी।

वो नये कपड़े, नया सूट, वो ऊपर टाई बहुत अच्छी थी
वो कागज़ के बने लोटे, वो रंग बिरंगी झालर अच्छी थी।

चमकते बल्बों की लड़ी, वो दियों की कतार अच्छी थी
आँगन में गोबर की लीपा पोती, ऊपर रंगोली अच्छी थी।

दादा दादी माँ बापू भाई बहन संग पूजा होना अच्छी थी
अब सब कुछ पीछे रह गया, दीपावली तो अब भी है !

पर पटाखे बम बन गये, रंगोली लहू बन बह गई
पिस्तौल जान लेने लगी, साँप अब आस्तीन के बन गये
फुलझड़ी अब बहनो को छेड़ने का लफ्ज बन गये।

ना दादा दादी रहे ना माँ बापू, बहन पराई हुई अब
पूजा मोबाइल पर आ गई, प्रसाद पीजा़ बन गया अब।

औपचारिकता है पर फिर भी दीपावली है, त्योहार हमारा
जैसा भी है सुन्दर है, सजीला है रंगीला है त्यौहार हमारा।