मुसाफिर अमर नाथ सिंह ‘मोही’ पर कटे हैं, इसलिए उड़ता नही हूँहूँ मुसाफिर, अंततः रुकता नही हूँ ।बौर आए हैं, टहनियाँ भी झुकी हैं,मैं टिकोरा हूँ, अभी झड़ता नही हूँ ।खाद-पानी की जरूरत, सख्त मुझको,मैं किसी तूफान से, डरता नही हूँ ।मैं न मिट्टी का खिलौना, दोस्त मेरे,मैं किसी बाजार में, बिकता नही हूँ ।प्रज्ज्वलित मैं दीप, जलता रात भर हूँ,भोर के पहले कभी, बुझता नही हूँ ।नाम है “मोही” कि ‘सागर’, ज्वार हिय में,मैं किसी प्रतिबंध में, बँधता नही हूँ ।