वो जमाना

फिर वही पुराना समय, वो जमाना याद आता है
आँगन में चूल्हे थे, साथ बैठती थी देवरानी जेठानी
परदे में रह कर भी खूबसूरत होती थी घर की रानी
रिश्ते कायम थे तब सास ससुर ननद और भौजाई के
ताऊ, चाचा, भतीजे भतीजी संग रिश्ते भाई भाई के
फिर वही पुराना समय, वो जमाना याद आता है।

खत चिट्ठी पाती में दिल के सब हाल लिखा करते थे
फिर उत्तर के लिए कई दिन इन्तजार किया करते थे
रक्षा बंधन, भाई दूज को बेटी अपनी घर को आती थी
वहीं इस घर की लक्ष्मी शान से अपने मायके जाती थी
फिर वही पुराना समय, वो जमाना याद आता है।

बुआ का सम्मान तो है ही, फूफा का भी सत्कार होता था
दीदी घर की रानी थी, तो जीजा का भी सम्मान होता था
सब कुछ बीते जमाने की बात, अब ये सब किसने देखा
ना रहे चूल्हे चौके, ना रहे परदे, घूघंट अब किसने देखा
फिर वही पुराना समय, वो जमाना याद आता है।

भरे पूरे परिवार सिमट गये, रिश्ते नाते सब बिखर गये
बुआ ताऊ चाचा भूले, भाई भतीजे सब रिश्ते विसर गये
अब जमाना बदल गया फुरसत कही खो गई भइया मेरे
कह ‘राजन’ सब रिश्ते छूटे सिर्फ तू और मै भइया मेरे
फिर वही पुराना समय, वो जमाना याद आता है।