तुम भी जलती रहो, मैं भी जलता रहूँ
बन के नभ चर, गगन भर विचरता रहूँ ।
तेरा दिल बन के दिल में, धड़कता रहूँ ॥
रात भर चाँदनी में, करूँ स्नान मैं,
चाँद में रूप तेरा, निरखता रहूँ ॥
माँग का तेरे सिंदूर, दमके सदा,
बन के माथे की बिंदिया, चमकता रहूँ ॥
मेरे खत से मिले दिल को, राहत अगर,
एक खत रोज मैं तुझको, लिखता रहूँ ॥
दिल का गम गर गलत, मेरी बातों से हो,
नित घडी़ दो घडी़, बात करता रहूँ ॥
ये तो वाजिब नहीं,ये मुनासिब नहीं,
तुम भी तड़पो, मैं खुद भी तड़पता रहूँ ॥
नाव मझधार में, डगमगाए न अब,
तुम भी सम्हलो, मैं खुद भी सम्हलता रहूँ ॥
स्वच्छ तन-मन लिए, प्रीति पथ पर सजग,
तुम भी चलती रहो, मैं भी चलता रहूँ ॥
साथ ‘सागर’ चलो, दीप बन तम हरो,
तुम भी जलती रहो, मैं भी जलता रहूँ ॥