जूठन विनोद ढींगरा ‘राजन’ छोड़ देते हैं जूठन थाली मे वोअपनी शान जिसे समझते हैंकिसी गरीब से पूछो तुम अन्नकी कीमत वो ही समझते हैं।ना मिला हो खाना एक वक्त जिसेवो तो पेट से भूखा हैउसे तो भूख मिटानी पेट कीखाना गीला है या सूखा है।मत बेकार करो भोजन कोजो तुम्हारी थाली मे हैये किसी माँ के बच्चों कानिवाला है तुम्हारी थाली में है।हर कोई ‘राजन’ नहीइस दुनिया में तुम जैसा!बहुत रंक भी है जो तरसतेएक वक्त खाना हो चाहे जैसा।