यह इश्क़ है, इस इश्क़ में कुछ बाज नही है, इस मर्ज का कुछ शर्तिया, इलाज नही है । है आग तो पा कर हवा, धधकेगी दिलों में, इस बात का शायद तुम्हें, अंदाज नहीं है ॥
दो दिल धड़कते हैं, मुहब्बत फिर तो करेंगे, यह इश्क़े-दिल है, उम्र का मोहताज नही है । इस इश्क़ की तासीर का, पर्याय जुदा है, क्या ताज-महल इश्क़ के सर-ताज नही है ॥
परहेज यदि मिलने से हो, तो हम न मिलेंगे, तुम खुश रहो तो कुछ मुझे, एतराज नहीं है । मैं बन गया ‘सागर’, ‘सरित’, लो थाम हृदय तुम, ‘मोही’ महज प्रिय मित्र है, सर-ताज नहीं है ॥