सारी दुनिया संत नही है अमर नाथ सिंह ‘मोही’ सारी दुनिया संत नही हैहर इक महिमावंत नही है ।रस से भीगा तन-मन फिर क्यों,कह दे आज बसंत नही है ॥विरहन जाने पीर विरह की,निज घर जिसका कंत नही है ।कोई विस्मृत कर न सकेगा,हर कोई दुष्यंत नही है ॥सम्भव पीर प्रबल बड़घाती,पर जीवन पर्यंत नहीं है ।सुख की खोज निरंतर जारी,इच्छाओं का अंत नहीं है ॥मंजिल कितनी दूर न देखो,कोई राह अनंत नही है ।‘मोही’ जीवन-प्रश्न जटिल परहल है, किंतु तुरंत नही है ॥