अजी अब सोचता हूँ तो

अजी अब सोचता हूँ तो
सनम ! यह याद आया है,
जमीं पर जन्म ले हमने
स्वयं को जान पाया है ।

नही समझा कि जीवन में
कभी यह दिन भी आएगा,
मुझे कहना पडे़गा यह
किसी ने फिर सताया है ।

तुम्हें अपनी कसम दूँ मैं
मुनासिब यह नही लगता,
मुझे नैराश्य का उजड़ा चमन
बिल्कुल न भाया है ।

हृदय का दर्द पिघला है
नयन में नीर भर आए,
अभी तो एक भी मौसम,
बहारों का न आया है ।

तुम्हीं ने तो किया वादा
लिया वादा, दिया वादा,
अजी वादा निभाने का
अभी अवसर न आया है ।

वही वादा इरादा है
कहीं कुछ कम न ज्यादा है,
मुहब्बत हेतु ही हमको
विधाता ने मिलाया है ।

अगर शिकवा गिला कुछ हो
लिखो वह बेहिचक दिलबर,
यहाँ बेचैन दिल को चैन
पल भर मिल न पाया है ।

जमाने को बता दो “सरि”
कि “सागर” फिर जनम लेकर,
मुहब्बत का नया इतिहास
रचने मीत आया है ।