तुम भी तो चिराग हो देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' हर बार यूँ न अंधेरों पे सारा दोष मढ़ दोतुम भी तो चिराग हो रोशनी ईजाद कर दो।जंजीर बांध रखी है खुद अपने पांव मेंहमसे कहते हो कि आओ आजाद कर दो।ज़ीनत इस घर की दहलीज से वाकिफ हैअब तो बेखौफ उसकी परवाज़ कर दो।अभी बच्चा है गुरबत-ए-मंजर बदल सकता हैनूर ए तालीम से सीरत आफ़ताब कर दो।खुशियों का मर्तबान खाली पड़ा है कब सेअपनी मुस्कुराहटों से फिर से शादाब कर दो।विनीत मेरी जिंदगी का कुछ ऐसा हिसाब कर दोअच्छा हो इस बार एक बोलती किताब कर दो।