तुम भी तो चिराग हो

हर बार यूँ न अंधेरों पे सारा दोष मढ़ दो
तुम भी तो चिराग हो रोशनी ईजाद कर दो।

जंजीर बांध रखी है खुद अपने पांव में
हमसे कहते हो कि आओ आजाद कर दो।

ज़ीनत इस घर की दहलीज से वाकिफ है
अब तो बेखौफ उसकी परवाज़ कर दो।

अभी बच्चा है गुरबत-ए-मंजर बदल सकता है
नूर ए तालीम से सीरत आफ़ताब कर दो।

खुशियों का मर्तबान खाली पड़ा है कब से
अपनी मुस्कुराहटों से फिर से शादाब कर दो।

विनीत मेरी जिंदगी का कुछ ऐसा हिसाब कर दो
अच्छा हो इस बार एक बोलती किताब कर दो।