अल्फ़ाज़ देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' बेशक मुझे दो अपने इश्क़ का नज़रानामगर चाहिए उसमे इश्क़ नजर आना।भरी महफ़िल में कैसे ना कर देतेअमानत तुम्हारी खुद आकर देते।सच है वो जो तेरे नसीबों मे हैन रुखसार मे है न शीबों मे है।लौट जा, और देर यहाँ रह मतनही इस दर पर खुदा की रहमत।