अल्फ़ाज़

बेशक मुझे दो अपने इश्क़ का नज़राना
मगर चाहिए उसमे इश्क़ नजर आना।

भरी महफ़िल में कैसे ना कर देते
अमानत तुम्हारी खुद आकर देते।

सच है वो जो तेरे नसीबों मे है
न रुखसार मे है न शीबों मे है।

लौट जा, और देर यहाँ रह मत
नही इस दर पर खुदा की रहमत।