वतन के वास्ते

वतन के वास्ते मरने की हसरत सबके दिल में है
वतन के वास्ते जीना चाहता क्यों नही कोई।

चलेंगे साथ इक पथ पर सभी के काफिले लेकिन
मिलकर इक कारवाँ होना चाहता क्यों नही कोई।

बड़े ही फक्र से कहते हैं कि इस मुल्क में जीते हैं
ग़म हो या खुशी हो पलकों पे संजोते हैं।

वक़्त आने दो जरा इक दिन बता देंगे तुम्हे
किस तरह आन-ए-वतन पर हम फिदा होते हैं।

अंगारों की सेज पर सोने को हैं बेचैन पर
आग बुझाने की कोशिश क्यों नही करता कोई।