कैसे कह दूँ

कैसे कह दूँ तुमसे कल मुलाकात होगी
रात ढल जाएगी यूँ ही न कोई बात होगी
ये शज़र मोहब्बत का खामोश खिल जायेगा
फलक से अंगारों की बरसात न होगी।

तेरी चौखट पे हो ज़माने की नजर क्या पता
मेरी राह में हो मीलों की सहर क्या पता
मै आ तो जाऊंगा तेरे शहर में
पर खामोश शायद इतनी शाम न होगी।

ख़ुशी की बांह पे खंजर चला दिया
जिस छाँव में संभले वही मंजर जला दिया
किस शै की खातिर इतना खुदगर्ज है जहाँ
कल आँसुओं से सींचा आज खंडहर बना दिया।

नफरत का रंग सुर्ख हिना में ऐसा मिला है
ये हथेली अब न कभी पाक़ होगी ।

कैसे कह दूँ तुमसे कल मुलाकात होगी
रात ढल जाएगी यूँ ही न कोई बात होगी।