कैसे कह दूँ देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' कैसे कह दूँ तुमसे कल मुलाकात होगीरात ढल जाएगी यूँ ही न कोई बात होगीये शज़र मोहब्बत का खामोश खिल जायेगाफलक से अंगारों की बरसात न होगी।तेरी चौखट पे हो ज़माने की नजर क्या पतामेरी राह में हो मीलों की सहर क्या पतामै आ तो जाऊंगा तेरे शहर मेंपर खामोश शायद इतनी शाम न होगी।ख़ुशी की बांह पे खंजर चला दियाजिस छाँव में संभले वही मंजर जला दियाकिस शै की खातिर इतना खुदगर्ज है जहाँ कल आँसुओं से सींचा आज खंडहर बना दिया।नफरत का रंग सुर्ख हिना में ऐसा मिला हैये हथेली अब न कभी पाक़ होगी ।कैसे कह दूँ तुमसे कल मुलाकात होगीरात ढल जाएगी यूँ ही न कोई बात होगी।