कभी हमको अपना साथी बनाते देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' कभी हमको अपना साथी बनातेमेरी हसरतों को दिल से लगाते,तुम्हें सौंप देते हम मुस्कान अपनीएहसास-ए ग़म जो हमे तुम दिलाते ।कब तक ग़म को छुपाते रहोगेखामोश दिल को जलाते रहोगे,अगर मान लेते हमारा भी कहनातो फिर तुम न यूँ ऐसे आँसू बहाते ।साथ निभाने के वादे किए तुमनेजब वक़्त आया तो हाल न पूछा,जो तन्हाइयों मे मेरे साथ होतेतो खुद को जमाने मे तन्हा न पाते ।हमे बेवफा कह के दिल से निकालाखुद भी वफा से किनारे रहे तुम,अगर याद होती जफ़ायें भी तुमकोतो एक पल मे कैसे हमे भूल जाते ।जमाने ने तुमको ठुकरा दिया तोनजर मे हमारी उतरने को आए,तुम इस कदर यूँ न बर्बाद होतेक्या है मोहब्बत अगर जान जाते।