कितनी राहें देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' एक मोड़ पर कितनी राहेंएक दृष्टि में दृश्य हजारोंकिधर चलें और किसको देखेंकिसकी ओर फैलाये बाहें। मेरे अंतस की चाह समझजो दिव्य दृष्टि दे जाता है।हर भटकन पर हाथ पकड़वो सही राह दिखलाता है। जीवन की अभिलाषा में जबविचलित होकर रोता हूँ।तब उसकी पावन अनुकंपा सेअपने सम्मुख होता हूँ।