तुम जो मिले तो देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद कोपाने की इक कोशिश की है।भूल गया मैं ख़ुद को जानेक्या पाने की ख़्वाहिश की है। मेरी खुशी को मैं तरसूँपर तेरे ग़म में अश्रु बहाऊँमनमौजी मन का पंछीहै कैद कहाँ कुछ जान न पाऊँ।बुझे हुए दीपक ने फिरजल उठने की फरमाइश की है।तुम जो मिले तो तुझमें ख़ुद कोपाने की इक कोशिश की है।