अंजाम

मुझे ग़म है नही कुछ भी मुझे चिंता तुम्हारी है

गुनाहों के सफर में जो जिंदगी तुमने गुजारी है।

उसे शिकवा नही कोई क़हर जिस पर तुम्हारा था

मगर मैं हमसफर हूँ जो मुझे कुछ न गंवारा था।

 

रूह उसकी मेरे ख्वाबो में आकर पूछती है रोज

मेरा किस्सा अधूरा होगा पूरा क्या किसी भी रोज।

उसे इंसाफ मिल जाये इबादत कर रहा हूँ मैं

दर्द न जाने कितने हर रोज सह रहा हूँ मैं।

 

जो है जान से प्यारा उसका काम क्या होगा

देखना है मेरे मौला कि अब अंजाम क्या होगा।