ग़म का दरिया देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' गम का दरिया धीरे धीरेनस नस मे उतार रहा हूँतुमसे तो मै हारा ही थाखुद से भी अब हार रहा हूँ ।लम्हा लम्हा वाकिफ हैउन दर्द भरे अल्फ़ाजों सेसदियों के पन्नो पर हर पललिखता तेरा नाम रहा हूँ ।फ़ासलों से मेरी नाराजगीयूं ही नहीं है बे-वजहजब मिले साहिल पे तुममै खड़ा उस पार रहा हूँ ।