तुम तो होना वहां देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' है तेरे नाम का एक बिछौना वहांमै रहूँ न रहूँ तुम तो होना वहां।वो महल था कभी, खंडहर आज हैउसपे हंसना नही तुम तो रोना वहां।कल तू रूठकर अपनी माँ से गयादेखना रखा है, तेरा खिलौना वहां।ग़म के कांटे, कहीं नफरतों के शज़रप्यार के बीज ही तुम तो बोना वहां।मै गुनहगार हूँ,वो गुनाहों का दरबात उठे, होश न तुम तो खोना वहां।है सियासत वही और वही लोग हैंबेफिक्र होके न तुम तो सोना वहां।