मन मेरा बांसुरी देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' करता उम्र भर चाकरी ही रहाख़त आखिरी था आखिरी ही रहा।इल्ज़ाम न दे बेरुखी का हवा कोकिवाड़ बंद किये आदमी ही रहा।लाख ढाये सितम असर क्या हुआजो पिया सांवरा बावरी ही रहा।हुनरमंद था समा बदल सकता थामगर करता ग़ैर की बराबरी ही रहा।नूर ए चश्म मिट गए नूर की चाह मेंइश्क़ था आफ़रीं आफ़रीं ही रहा।गीत तूने रचा साज तेरा बजामन मेरा बांसुरी बांसुरी ही रहा।