तन की चाह देवेंद्र प्रताप वर्मा 'विनीत' क्या ये तन की चाह है या चित्त की पुकार हैकि ख्वाब दर खयाल तुमनजर में बस रहे हो किंतुकण हृदय की पीर केअश्रु में ढले नही हैं।हाँ ये तन की चाह हैचित्त की पुकार नहीकि ख्वाब दर खयाल जलरहा है मन सुमन किंतुचाह के शुष्क खर अब तलक जले नही हैं।