इत्तेफाक़

ना जाने क्यों है

पर है बेवजह अनायास

तेरी इक तस्वीर मेरे पास

जबकि मैं और तुम

कभी मिले नही हैं!


ये इत्तेफाक़ है

या कुदरत की कोई चाल है

जो मिट्टी हवा आब खुशबू

धूप चाँद रात है

पर गुल मुहब्बत के अभी तक

खिले नहीं है।