चुनाव खत्म हुआ बात खत्म हुई मोहम्मद शहरयार कोई क़ीमत ही कहां रह गई है जानों कीचुनाव ख़त्म हुआ, बात ख़त्म हुई जवानों की।अगर मज़हब को पॉलिटिक्स से अलग कर देंतो फ़िर कुर्सी कहां बचेगी हुक़मरानो की।दाम पेट्रोल और डीजल के बढ़ रहे हैं यूंहसरत-ए-यार जैसे बढ़ती है दीवानों की।पार्लियामेंट में गूंज रहे हैं मज़हबी नारेधज्जियां उड़ रही हैं खुल के संविधानों की।ज़मीं पे चलना अभी तक नहीं आया, लेकिनबातें मंगल की, चाँद की और आसमानों की।रोज़ मरते हों भले कर्ज़ में दब के ‘शहरयार’एहमियत बहुत है चुनाव में किसानों की।