मुझमें सावन इतना भर दो

मुझमें सावन इतना भर दो,
हो जाये तन सारा पावन।
कितने बसंत छाए पलकों पर,
फिर भी रहा मन अति निर्धन।

मुझ पर छाया क्रंदन,
करता हूँ नित तेरा वंदन!
सात सुरों के हे स्वामी!
मुझमें आज तेरा अभिनंदन।।

पालक पावड़े आज सजाये,
फूल मनोहर चुनके लाये।
तेरी झूठी अभिलाषा ने,
भर दिया जीवन में रोदन।

कितने सुंदर मधुमासों ने,
मुझको रीते राह दिखाये
बुझा गई ज्योति आशा की
तेरी यादों की कम्पन।

क्या कहती है पावस की ऋतु
मुझमें बुझती सी ज्वाला।
क्रंदन मुझमें भरने वालों
क्या मैं तेरे मन की उलझन।।