हथिनी की मृत्यु

ओ भूखी गर्भिणी हथिनी,
आज मानवता शर्मसार है ।
सब चुप है, लोग क्यों बोले,
तू कोई फिल्मी कलाकार है ।
माफ़ करना जो तूने सही,
उस वीभत्स अत्याचार को।
हर रोज मरते हैं पशु यहाँ,
गोश्त के व्यापार में ।
तेरी आवाज़ भी दब जाएगी,
क्योंकि यहाँ मुर्दे पत्रकार हैं ।
माफ़ कर दो ओ हथिनी,
आज मानवता शर्मसार है ।।

तेरे नाम की दो मोमबत्ती जलेगी,
पर लोगों की चुप्पी खूब खलेगी ।
दो चार दिन बीत जाएंगे,
फिर ऐसे ही निरीह पशु मारे जाएंगे ।
हाथी कुत्ते गाय सूअर या नीलगाय,
ना इनकी कोई जाति है ना हीं संप्रदाय ।
सब आदि प्रजापति की संतान हैं,
चाहे कुत्ते हाथी या इन्सान है ।
फिर इनकी मृत्यु पर पूछना,
कैसे सांप्रदायिक रंग है?
चैनलों पर चल रही,
तू तू मैं मैं की जंग है ।
ना कर मानवता शर्मसार,
हे मानव तू कर स्वीकार ।
अब बंद कर यह अत्याचार है ।
माफ़ कर दो ओ हथिनी,
आज मानवता शर्मसार है ।
मानवता शर्मसार है ।।