जीत कर

मैं निरंतर बढ़ती रहूंगी,
चाहे दुनिया देखती रहे आँखे तरेर कर।
मेरे कदम उस वक्त भी नही रुकेंगे,
जब पूरी दुनिया खड़ी हो मुझे घेरकर।

जब उम्र मेरी फूल की थी,
तभी से शुरू है शूल की बारिश।
आखिर बचा कौन है यहाँ
जो मुझे कहा न होगा लावारिस।

कभी माँ-बाप की हैसियत,पुश्तैनी,
आखिर लोगो ने किस-किस को नही कोसा।
पर तब भी और अब भी
मुझे अपने बाजुओं पर है पूरा भरोसा।

क्यों शक है लोगो को मेरे हौसले,
हिम्मत और सभ्यतामयी सीख पर।
ओ मुझसे नफ़रते करनेवाले लोग सब
रख लें अपनी हाथों पर लिखकर।

जिस दिन मौका मिले आयेंगे
पूरी मजबूती के साथ इस महफिल में लौट कर।
इन तमाम दुनिया वालों के
दिलों में रख दूँगी सरेआम जीत कर।