कायरता

जीवन के लक्ष्य डगमगाये हैं,
छाये है जब भी मूढ़ता।
मुझकों इस परिवेश ने कैसी,
सिखा दिया है कायरता।

अन्याय देख तुम मौन रहो,
कभी धिक्कार नही कर सकती।
गलत राह भी सही हुई है,
अपनों का उजाड़ नही कर सकती।

कभी अपनों के विरुद्ध आवाज़ें,
तुम ऐसा व्यवहार नही कर सकती।
इतना तो चलता ही है,
क्या तुम अंगीकार नही कर सकती।

कलमों को रोको तुम अपनी,
वारदातें कभी उघार नही कर सकती।
जिस घर में पली-बढ़ी हो,
उस पर अत्याचार नही कर सकती।

यहाँ बिक जाती है पत्रकारिता,
कभी सही समाचार नही कर सकती।
जहाँ इशारों पर छपती है ख़बरें,
वहाँ कुछ अखबार नही कर सकती।

जो खुद झूठें आदेशवाहक हो,
वो कुछ भी सरकार नही कर सकती।
यह चोरों की बस्ती है सुन लों,
यहाँ सच का व्यापार नही कर सकती।