जिम्मेदारी

धीर-धीरे-धीरे खत्म हो रहे जिदंगी के व्यू,
ओ खुदा ले रहे है आप कैसे-कैसे इंटरव्यू।

अपराधों के हौसले बड़े बुलंद हो रहे हैं,
न्याय तो धीरे-धीरे यहाँ मंद हो रहे हैं।

न्यायालय से न्याय जैसे जुदा हो गया है,
क्यों आज बहरा हमारा ख़ुदा हो गया है।

साजिशों से जमाने परेशान हो गये हैं,
क्यों मौन व्रतधारी भगवान हो गये हैं।

आज सब घायल दिलों की मेरी दास्तां सुनो,
बचा विकल्प कह रहा मौत का रास्ता चुनो।

आखिरी विनय भी सुन लीजिये हमारी,
तस्वीर से निकलकर निभाइए जिम्मेदारी।

इन विश्वासों से पर्दा भी तब उठ जाएगा,
जीवन सबका जो असमय ही लुट जाएगा।