सीखा है

तमस में दीप जलाना सीखा है
फ़राज से चंदा चुराना सीखा है ।

मासूम से ही कुछ ख्वाब, हैं अपने
ख्वाबों को हमने सजाना सीखा है ।

फूलों से भी प्यारी, हुई जिंदगी,
गमों को जबसे, भुलाना सीखा है ।

नाज है विरासत में मिले रिश्तों पर,
अपनों पर हमने, इतराना सीखा है ।

सिसकियाँ लिखीं है, जीस्त में तो क्या,
चिढ़ा जिंदगी को, गुनगुनाना सीखा है ।

कोई नाराज न हो हमसे, इल्तजा इतनी,
शिद्दत से रूठों को, मनाना सीखा है ।

जमाने से फिरती है बेगानी ‘मल्लिका’
एक तुझको ही तो, रिझाना सीखा है ।