मन की बातें

क्या कहूँ, कैसे कहूँ तुम्हें मैं
मन की बात कही ना जाए
ना जाने बार बार
मेरे कदम क्यों थम से जाते हैं
जब भी गुजरना चाहता हूँ तुम्हारे शहर से
पल दो पल के लिए ना सही
जनम जनम का साथ
निभाने की कसमें खाई हैं हमने
फिर भी मन की बात कही ना जाए।

तू अपना नहीं है
अपने से भी बढ़कर है
जान से बढ़कर जान हो
ये दिल ही जानता है
फिर भी ये दिल जार जार चाहता है
तू सामने नहीं मेरे
पर सामने ही नजर आती है
हकीकत ना सही
पर तुम रोज ख्वाबों में गुजरती हो
फूलों जैसी नाजुक हो
नाजुक कली सी कशिश नजर आती है
जब भी देखता हूँ कोई फूल गुलाब का
मुझे तुम्हारा ही चेहरा नजर आता है
तुम्हारी मुस्कुराहटों से
खिलती है बागों में कलियाँ
छा जाती है खुशियाँ बहारों में
मन की बातें नही कह सकता तुम्हें
‘सोनू’तुम ही मेरी एहसास हो।

जब भी मेरी रूह
तुम्हारे रूह को स्पर्श करती है
मेरा रूह तुम्हारी रूह से गुजर जाता है
एक दिव्यता का सा सुकून मिलता है
मन की बात कही ना जाए मुझसे
तुम मेरी रब हो
तुम खुदा हो
मेरी इबादत हो
मेरी साँसे तुम्हारी सांसों से
होकर गुजरती है।