मैं नारी हूँ

मैं नारी हूँ
मेरे अंदर भी
एक नरम दिल है
एक प्यारा प्यारा सा
एहसास है।

मैंने भी कुछ सुनहरे
ख़्वाब देखे हैं
पंक्षियों की तरह
आसमां में उड़ना चाहती हूँ।

आज समाज में नारी सम्मान
विडंबना है
पुरुष प्रधान समाज से
नारी मन आहत है।

आज नारी ही नारी के कारण
सबसे असुरक्षित है
कारण नारी ही नारी की
शत्रु बन गई है।

बेवजह ही नारी को
आरोपित किया जाता है
जबरदस्ती झूठे
लांछन लगाया जाता है।

अपनी कोख से
असह्य पीड़ा सह जन्म देती है
सीने को चीरकर
दुग्ध की धारा बहाती है
सारा कष्ट सहनकर भी
वो मरहम लगाती है।

नारी है तो क्या
गर्त में डाल दोगे ?

सारा समाज
नारी को बोझ समझता है
गर्भ में ही मारकर
दुनिया में आने से रोकता है।

पुरुष के संरक्षण में प्रताड़ित
पल्लवित होती है।
मंदिर में नारी शक्ति की
पूजा करता है
घर की नारी शक्ति को
प्रताड़ित करता है।

इंसानी पशुओं के मध्य
अपने आप को बचाती हूँ
हाँ मैं नारी हूँ।

पुरुष कुत्सित निगाहों,
फरेबी वादों
हवसी नजर,
दरिंदगी चालों
और प्रेम से फुसलाते हैं।
मीठी बातों के छद्म जाल में
फंसाकर शिकार बनाते हैं।

नारी की अस्मत को
तार तार कर सड़कों में फेंक देता है।
सिर्फ इसलिए कि मैं नारी हूँ
इसलिये सारे के सारे अधिकार पुरुष को हैं।

मैं नारी हूँ
इसलिये मेरी कोई
महत्ता नही समझते हैं।
ऐ पुरुष प्रधान समाज के लोगों
जरा ध्यान से सुनो !
मैं ही प्रकृति हूँ,
मैं ही सब हूँ,
मैं ही रब हूँ,
क्योंकि मैं ही नारी हूँ।

मैं ही शिव,
मैं ही शक्ति,
मैं ही सुंदर,
मैं ही अर्धनारीश्वर हूँ।
नारी बिना
पुरुष अस्तित्व विहीन
शक्तिहीन है।
हाँ मैं नारी हूँ॥