अश्कों में बहते तराने

मैं अश्कों में बहतें तराने लिखूंगी,
बुरे दौर के कुछ फ़साने लिखूंगी ।

कि दुनिया हमारी है जालिम बहुत ही,
वो मासूम दिखते सयाने लिखूंगी ।

सदाकत, रफ़ाक़त, मुहब्बत हमारी,
ये सारे कुचलते ज़माने लिखूंगी ।

सिकंदर हज़ारों ज़माने में लेकिन,
मैं हारी हुई दास्ताने लिखूंगी ।

इबादत है बिकती हां भक्ति भी बिकती,
मैं सच बोलते वो मयखाने लिखूंगी ।

ज़मीं से उठा के फ़लक पे बिठाया,
मैं दिल जीतते वो दिवाने लिखूंगी ।

बुराई से लबरेज़ दुनिया है फिर भी,
फरिश्तों के कुछ आशियाने लिखूंगी ।

मुझे कर के यूँ दर ब दर जाने वाले,
कतल करते किस्से पुराने लिखूंगी ।

है “निधि” मग़र कुछ फरिश्तों से यारी,
कि यारी को अब मैं खजाने लिखूंगी ।