कैसे मिलेंगे राम

बोलो ! कैसे मिलेंगे राम
मन की माला फेर कर
मन को ना फेर सके
कपट में बीता सुबह-शाम
कैसा किया ये काम
बोलो ! कैसे मिलेंगे राम
झरने सा है स्वच्छ जीवन
जीवन जैसे है सुंदर उपवन
तूने झरने का मुख मोड़ कर
प्रकृति से किया खिलवाड़
अब तो सावन में भी सूखी शाम
कैसा किया ये काम
बोलो ! कैसे मिलेंगे राम ।