नियति

उस भंवरे को भी क्या पता था
जो फूल पर मधु पीने को अड़ा था।

क्या‌ खबर थी उसे
कि सूरज ढलने वाला है
नहीं मालूम था उसे
कि वह फूल के अंदर ही फॅंसने वाला है।

शाम हुई,
फूल बन्द‌ हो गया
भॅंवरा भी उसमें नजरबंद हो गया।

उम्मीद की आस
फिर भी न छोड़ी
फूल खिलेगा सवेरे
मन में आशा थी थोड़ी।

गुजर रहा था
इक मतवाला हाथी उधर से
वो बन्द भॅंवरा वाला फूल
तोड़ दिया झट से।

मर गया भॅंवरा इसी उम्मीद के शोर में
फूल खिलते ही आजाद हो जाऊंगा भोर में।

क्या‌ नियति को भी उस पर दया नहीं आई
इक मधु के लालच में भॅंवरे ने जान गंवाई।