सावन की यादें
मेरे लिये ये सावन
नहीं रहा मनभावन
जो तुम चली गई
जो तुम चली गई।
जब-जब छाये काली घटायें
जैसे तेरी जुल्फें लहरायें,
जब-जब बादल बरसे झम-झम
याद आये तेरी पायलों की छम-छम,
तेरे बिना ये जीवन जैसे काँटों का उपवन
जो तुम चली गई।
तेरे बिना ये सावन
नहीं रहा मनभावन ।
फूलों सी खिल जाती थी
बारिश की पहली फूहारों में,
दोनों मिल खुश होते थे
सावन की मस्त बहारों में,
भीगा-भीगा तेरा दामन
खिला-खिला तेरा यौवन
सब संग चली गई
तेरे संग चली गई ।
मेरे लिये ये सावन
नहीं रहा मनभावन ।
तू झूले पर होती थी
मैं तुझे झुलाया करता था,
पीछे से चुपके से जाकर
तुम्हें बुलाया करता था,
पल-पल हर-पल एक-पल भी ना
तुझे किनारा करता था
तेरी आँखों में खुद को
दिन रात निहारा करता था।
तेरी आँखें मेरा दर्पण,
टूट गया मेरा दर्पण
जो तुम चली गई।
मेरे लिये ये सावन
नहीं रहा मनभावन ।
मेरा नाम मेहंदी से लिखती थी
तू अपने हाथों में,
लाख छुपाने पर भी
दिख जाती थी बातों-बातों में,
हरी-हरी तेरी चूड़ियाँ
तेरी चूड़ियों की खनखन
तेरे संग चली गई।
मेरे लिये ये सावन
नहीं रहा मनभावन ।