राहत राजीव रंजन अपने पेशानी पर रखता था हिंदुस्तान वो,मुशायरों और महफ़िलों का था शान वो।असमय दुनियां को अलविदा कह गया,बस उसका अल्फ़ाज़ ज़ेहन में रह गया।जिसे सुनता था सारा जहांन,अज़ीम शख्सियत जिंदादिल इंसान।वो आज हमसे जुदा हो गया,ख़ुदा का बंदा आज ख़ुद ख़ुदा हो गया।जन्नत में जगह देना इतनी इल्तिजा है अब,या खुदा या मौला या रब।