माधव की महिमा

जब धरती पर हुआ अधर्म का पलड़ा भारी,
तब अवतरित हुए चक्र-सुदर्शन-धारी।

सवार होकर फन पर जिसने नर्तन किया,
बाल्यकाल में ही कालिया का मर्दन किया।

अभिमानी कंस ने आजमाया अपना बल,
वध किया कंस का दिया उसके कर्मों का फल।

भरी सभा में पांचाली की हो रही थी जगहंसाई,
आपके घर की लाज हूँ द्रौपदी देती रही दुहाई।

पाँचों पति वहीं बैठे थे लूट रही थी अस्मत,
रो-रो कर धिक्कार रही हाय रे मेरी किस्मत !

भीष्म,द्रोण,धृतराष्ट्र किसी को शर्म न आई,
तब द्रौपदी ने मोहन को आवाज लगाई।

द्रौपदी के करूण पुकार पर दौड़े आए कन्हाई,
आकर केशव ने अबला की लाज बचाई।

उलझ रहे थे हस्तिनापुर में जब भाई से भाई ,
धन के लिये दुर्योधन बन बैठा था कसाई।

तब माधव ने कुरुक्षेत्र में धर्मयुद्ध करवाया,
शरण में आये पांडव को उनका हक दिलवाया।

बिना प्रभु के मर्जी के एक पत्ता भी नहीं हिलता,
खड़े न होते केशव तो पांडव को हक न मिलता।

चला बांधने दुर्योधन तब विराट स्वरूप दिखलाया,
अर्जुन को मोह से मुक्त किया गीता का ज्ञान सुनाया।

ना मैं मीरा ना ही रसखान मैं।
माधव की महिमा क्या करूँ बखान मैं॥