मैं जब जब अपने हक़ की बातें करूँगी तुम तब तब अपनी बातों से मुकर जाया करोगे ।
मैं जिद्द करूँगी तुम गुस्सा हो जाओगे मैं गुस्सा करूँगी तुम और गुस्सा हो जाओगे मैं और गुस्सा करूँगी तुम हाथ उठाने पे आ जाओगे मैं अपनी आवाज़ उठाऊँगी तुम मेरे बदन पे शोर मचाओगे और फिर मैं गिड़गिड़ाऊँगी फिर तुम खुश हो जाओगे अपनी दम्भ की पताका भी फहराओगे ।
और फिर रात में जब मेरे जिस्म से तुम खेलोगे फिर मुझे पुचकारोगे और गहरी आँहें भरकर बोलोगे “तुम अपने अधिकारों की बातें क्यों नहीं करती ?”