प्रभात बेला राजीव रंजन सूरज की लालिमा से आकाश हुआ लाल है,शीतल समीर का अहसास बेमिसाल है।चहचहा रही चिड़ियाँ कह रही है सुप्रभात,होनेवाली है सुबह, विदा ले रही है रात।बिखरे पड़े हैं मोती हरी-हरी घास पर,गूँज रहा मंदिरों में घंटी का मधुर स्वर।प्रकृति की छवि का अद्भुत नजारा है,खिल गई है कलियाँ उपवन कितना प्यारा है।‘अमृत-बेला’ में जो जाग जाता है,विद्या,बुद्धि व स्मरण शक्ति पाता है।प्रातःकाल उठता करता है योग,उसका शरीर सदा रहता निरोग।नव-प्रभात जीवन में नव-ऊर्जा भरता है,बिना कठिन श्रम के जीवन कहाँ संवरता है।जागो ‘प्रभात बेला’ में तोड़ो आलस्य के घेरे,हरि-स्मरण करो उठकर सुबह-सवेरे।