दर्द का एहसास

बेटा था वो अपनी माँ का, राज दुलारा आँखों में,
माँ की गोद सूनी हो गई, आँसू सूख गए आँखों में।
बैठे थे सब आस लगाए, काम अपना छोड़कर
आने को तो आया बेटा, आया तिरंगा ओढ़कर।

किया नहीं परवाह जिसने, चूड़ी कंगन बिंदिया का
शत्रुओं से भिड़ा अकेले, परवाह था बस इंडिया का।
पत्नी खुश थी छुट्टी लेकर, मेरे साजन आयेंगे
हनीमून के लिए सजनवा, काश्मीर ले जायेंगे।

उसको क्या मालूम था कि, उसकी किस्मत फूटी थी
अभी तो उसके हाथों की, मेंहदी भी नहीं छूटी थी।
आने को तो आया साजन, आया तिरंगा ओढ़कर
देश की खातिर चला गया, अपनों से मुँह मोड़कर।

आयेंगे पापा यह सुनकर, पुलकित थी बिटिया रानी
पापा के संग खेलेंगे, खूब करेंगे मनमानी।
आने को तो आये पापा, आये तिरंगा ओढ़कर
देश की खातिर चले गए, बिटिया से नाता तोड़कर।

इन वीरों के कारण ही, हमारे घरों में दिए जलते हैं
गोली खाकर सीने पर, कहा कि अब हम चलते हैं।
आओ मिलकर दीप जलायें, हम तुम उनके नाम
वो जिन्होने तिरंगे को, किया आखिरी सलाम।