नज़र आते हो (नज़्म)

क्या बात है कि घबराए नज़र आते हो,
अपने ही घर में पराए नज़र आते हो ।

ना तो कोई बात,ना ही कोई मुलाक़ात,
दीवार पे चित्र से सजाए नज़र आते हो ।

सब तो पा लिया है अपनी जिन्दगी में,
तो भी क्यूँ तूफाँ उठाए नज़र आते हो ।

कहने को जोड़ रखा है अपनी माटी से,
सूखे पौधा सा मुरझाए नज़र आते हो ।

अपनी ही देहरी पे छाता करके बैठे हो,
किसी सावन से रूलाए नज़र आते हो ।

कि तुम और रूठ जाओ हर एक बात पे,
बस उसी तरह से मनाए नज़र आते हो ।