निभाना आ गया(गज़ल) सलिल सरोज जब से अपना जख्म छिपाना आ गयाफिर हम को सब से निभाना आ गया। जिन्हें चाहते थे, उनका दीदार हुआ तोबेसब्र बरसात में भी पसीना आ गया। जुर्म करने वाले जुर्म करते रहे शौक सेदौरे-सज़ा मजलूम पे निशाना आ गया। वो दिन-रात हक़ की पैरवी करता रहापर लोग कहते हैं इक दीवाना आ गया। कभी भूख का इलाज हुआ करती थीअब रोटी से खेल का ज़माना आ गया। जब अपनी सेहत पे असर पड़ने लगातब हमें भी दुआ में हाथ उठाना आ गया।