बताने लगे हैं (नज़्म) सलिल सरोज जब से आईने से नज़र मिलाने लगे हैंअपनी ही बातों से वो उकताने लगे हैं । अपने भी घर में जब होने लगा हादसावाइज़ नफरत की दीवार गिराने लगे हैं । अकेलेपन से जब घिर गए हर ओर सेफिर अपने पराए सबको मनाने लगे हैं । मन्दिर मस्जिद से जब बात नहीं बनीतब इन किताबों से धूल हटाने लगे हैं । सब दंगे-फसाद जब हो गए नाकामबात-चीत को समाधान बताने लगे हैं । समझे जब देश बना है हर आदमी सेतो हर इंसान को इंसान बताने लगे हैं ।