इसलिए हर दिलों में अमर नाथ सिंह ‘मोही’ जब कभी दायरे से निकलना पडा़साँप का ही खुला मुँह कुचलना पडा़।सर से पानी गुजरने को जब-जब हुआ,गहरे पानी से हो कर गुजरना पडा़।हर घडे़ में भरे थे गले तक गरल,इसलिए विष को अमृत समझना पडा़।गैर से तो नही डर तो अपनों से है,जिनकी खातिर स्व-पर खुद कतरना पडा़।एक पल के लिए कोई अपना कहे,साध मुग्धा लिए नित भटकना पडा़।प्यार की कोई रेखा न थी हाथ में,इसलिए हर दिलों में उतरना पडा़।पोछने मेरे आँसू, “सरित” चल पडी़,इसलिए बन के, “सागर” सवँरना पडा़॥