शब्दों से होली

अबीर, गुलाल के बदरा बरसें,
महासिंधु पर होली में।

मधुकर, कोकिल धूम मचावें,
फगुवारों की टोली में।

रस की हो बरसात धरा की,
धानी चूनर-चोली में।

नाचे मस्त मयूरा मन का,
ता-ता थैया बोली में।

थम-थम जाएँ पाँव “सरित”,
के “सागर” की अंकोली में।

सिंदूरी रँग बिखरा जाए,
आसमान की झोली में।

हलके से “सरिता” मुसकाए,
चढ़ चंदा सँग डोली में।

मोती मेरे मन का मधुरिम,
जकडा़ अपनी मूठी में।

हीर कनी सा जडा़ तुम्हें भी,
हिय की अहम अँगूठी में।

विशेष:-(इस रचना के हर पंक्ति के प्रथमाक्षर ऊपर से नीचे क्रमशः संयुक्त करने से कवि का सम्पूर्ण नाम अंकित होता है।)